झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में होने वाली मौतों में 65% नवजात
रांची / झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में नवजात बच्चों (शून्य से दो माह) की मृत्यु दर सबसे अधिक है। यहां होनेवाली मौत में करीब 65 प्रतिशत बच्चे शून्य से दो माह के बीच के हैं। पिछले 12 महीने में यहां 737 नवजात बच्चों की मौत इलाज के दौरान हो गई। खासकर वैसे बच्चे जिनका जन्म बाहर हुअा अौर फिर इलाज के लिए उन्हें रिम्स लाया गया, उनकी मृत्युदर अौर भी ज्यादा है। जबकि रिम्स में पैदा होने वाले नवजात बच्चों की डेथ रेट कम है। रिम्स के शिशु रोग विभागाध्यक्ष का कहना है कि रिम्स में जो बच्चे लाए जाते हैं, वे काफी खराब स्थिति में अाते हैं। उन्हें बचाना काफी मुश्किल होता है। बच्चों को बिना किसी मेडिकल केयर के रिम्स लाया जाता है। साधारण गाड़ियों में उन्हें लेकर अाया जाता है, जबकि एबुलेंस में मेडिकल केयर के साथ उन्हें लाया जाना चाहिए।
एक साल में कुल 1246 बच्चों की मौत, जिसमें 737 नवजात
रिम्स प्रबंधन की अोर से जारी आंकड़े में बताया गया कि पिछले 12 महीने में रिम्स में 1246 बच्चों की मौत हुई। इसमें से 737 बच्चे नवजात थे। कुल 737 नवजात बच्चों में से 472 बच्चे एेसे थे, जिन्हें इलाज के लिए बाहर से लाया गया था। रिम्स में जन्म लेने वाले 265 नवजात बच्चों की इलाज के दौरान मौत हुई।
विभागाध्यक्षों को 15 हजार फंड, फिर भी ठीक नहीं हो रहीं मशीनें
रिम्स में सभी विभागाध्यक्षों को अपने-अपने विभाग में छोटी-मोटी परेशानियों अौर मशीनों को ठीक कराने के लिए 15 हजार रुपए का फंड दिया गया है। रिम्स निदेशक डॉ. दिनेश कुमार सिंह ने बताया कि विभागाध्यक्षों को यह फंड इसलिए दिया गया है कि विभाग की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए उन्हें प्रबंधन का मुंह न देखना पड़े। वे इन पैसे से मशीनें ठीक करा सकते हैं। पैसा खर्च होने के बाद उन्हें इसका हिसाब देना है। जैसे ही वे हिसाब दे देंगे, फिर से उन्हें 15 हजार रुपए अावंटित कर दिए जाएंगे। हालांकि कई विभागाध्यक्ष इसमें रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
देश में शिशु मौत वाले टाॅप-10 अस्पतालाें में झारखंड भी
- देश में शिशु मौतों में टाॅप-10 अस्पतालों में झारखंड के भी अस्पताल हैं। एनएचएम की स्पेशल न्यूबाेर्न केयर यूनिट की रिपोर्ट के आंकड़े के अनुसार इसमें पश्चिम सिंहभूम के जिला अस्पताल हैं।
- सबसे ज्यादा शिशु मौतें महात्मा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल, वारंगल, तेलंगाना में 56.5% होती हैं।
- इसी लिस्ट में सातवें स्थान पर झारखंड में पश्चिमी सिंहभूम के जिला अस्पताल में 29.4% नवजातों की मौत हो जाती है।
चौंकाते हैं ये आंकड़े
- भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर पहली बार दुनिया के अंडर 5 बच्चों की मृत्यु दर के बराबर आ गई। इससे पहले तक भारत की दर पूरी दुनिया के मुकाबले कहीं ज्यादा थी।
- 1990 में भारत की शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 129 थी। 2005 में ये घटकर 58, 2017 में 39 अौर वर्ष 2019 में 33 प्रति 1000 पर रही है यानी कि हमारे यहां शिशु मृत्यु दर कम हो रही है।
- दुनियाभर में होने वाली मौतों में भारत का हिस्सा घटकर 18 प्रतिशत हो गया है। यानी भारत में दुनिया के 18% बच्चे पैदा हुए और 18% बच्चे ही मरे। जबकि 1990 में दुनिया के 18% बच्चे भारत में पैदा हुए थे, लेकिन मरे 27% थे।
- लड़के-लड़कियों की मौत का अंतर भी घटा। पहले 10% ज्यादा लड़कियां मरती थीं, पर 2017 में लड़कों के मुकाबले 2.5% ज्यादा लड़कियों की मौत हुई।
नगालैंड, केरल, पुडुचेरी, सिक्किम और गोवा जैसे राज्यों से सीखने की जरूरत
राजस्थान के कोटा में 110 बच्चों की मौत के बाद प्रदेश सुर्खियों में बना हुआ है। इसीलिए भास्कर ने देशभर में शिशु मृत्यु-दर के आंकड़ों को खंगाला तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा के हालात तो राजस्थान से भी ज्यादा खराब हैं। वहीं, नगालैंड, गोवा, केरल, पुडुचेरी और सिक्किम में शिशु मृत्यु दर सबसे कम (7-12 मौत प्रति हजार) है। झारखंड ही नहीं, पूरे देश को इनसे सीखने की जरूरत है। भास्कर ने इन राज्यों के न्यू बोर्न रिसोर्स सिस्टम को समझा और पाया कि कैसे सामान्य मॉनिटरिंग से बच्चों की जिंदगी बचाई जा सकती है।
- स्टेट न्यू बोर्न रिसोर्स सेंटर बनाए जाएं अस्पतालों में
- नर्सिंग का अलग नियोनेटल कैडर बनना चाहिए
- मशीनों की सर्विस की व्यवस्था भी बिना देरी के हो
झारखंड में शिशु मृत्युदर 29
एसआरएस-2016 की रिपोर्ट के अनुसार, एक अनुमान के आधार पर राज्य में प्रतिवर्ष लगभग 17,500 नवजातों की मृत्यु हो जाती है। हालांकि राज्य में शिशु स्वास्थ्य में बेहतर प्रयास से एक अनुमान के मुताबिक 2011 से अबतक 6000 नवजातों को बचाया जा सका है।
मां की पीड़ा समझे सरकार...नर्स और डॉक्टरों की कमी का खामियाजा भुगत रहीं
रिम्स के शिशु रोग विभाग और यहां तक की नियोनेटल आईसीयू में भी सुविधाओं की घोर कमी है। नर्स और डॉक्टर की कमी का खामियाजा भी मासूम भुगत रहे हैं। रिम्स के 16 बेड वाले शिशु रोग आईसीयू में हर दो बीमार बच्चे पर एक नर्स की जरूरत होती है पर यहां 16 बेड के लिए 24 घंटे के लिए सिर्फ नौ सिस्टर हैं। वार्मर और फोटोथेरेपी मशीन की कमी इतनी की एक-एक वार्मर पर दो से तीन बीमार नवजात को रखा जाता है, जिससे इनके आपस में ही संक्रमण का खतरा रहता है। रिम्स अधीक्षक का कहना है कि अधिक संख्या में बीमार नवजात और बच्चे रिम्स पहुंचते हैं। कई गंभीर स्थिति में आते हैं, इसलिए मृत्यु दर ज्यादा है।